शुक्रवार, 11 मार्च 2011

दम तोड़ रही है !



यमुना !
वृद्धाकार !
तटबंधों पर रेत के टीले !
और उन पर उगते
सफ़ेद कांस केश !
रुग्णित, विक्लांत !
                                   दिल्ली में,
जीवनदान या इच्छा मृत्यु की
भीख मांगती !
चौमासा में
यौवन, इठलाती बलखाती
और आवेशित रोष  भी दिखाती !
परन्तु
पतझड़ तक न जाने
क्यों बुढ़ापा घेर लेता
जल, जल नहीं, विषज़ हो जाता  है
दिल्ली के परनालो से भी
होता विष  अवसिंचन !
तब यह अचेत, अति रुग्ण,
बड़े अस्पतालों के अस्तित्व पर
प्रश्न चिन्ह छोडती
क्योंकि यह तो
बिना औषधि
दम तोड़ रही है !