बुधवार, 14 जुलाई 2010

shiksha aur bharat

 पढ़ते सहस्रों शिष्य हैं, पर फीस ली जाती नहीं
उच्च शिक्षा तुच्छ धन पर बेच दी जाती नहीं .
ये शब्द हैं राष्ट्र कवि मैथलीशरण  गुप्त की.   भारत देश विश्व गुरु था . और अब विदेशी संस्थाएं  भारत को पढ़ने के लिए तैयार  बैठी हैं.   कल यह विश्व गुरु  विश्व शिष्य कहलायेगा .  कण्वाश्रम, तक्षशिला, और नालंदा विश्वविदालय  अब सिर्फ इतिहास बन कर भुला दिए जायेंगे.  याद करने के लिए आक्सफोर्ड , कम्ब्रिज़ आदि युनिवार्सित्यां  हमारे समक्ष पेश हो जायेंगे .
अब ऐसा  तो होगा ही . जब प्राथमिक विदालयों में पढाई का स्तर नगण्य हो चूका है. ग्रामीण क्षेत्र में  कक्षाओं में अध्यापक अपने घरेलु कार्यों में व्यस्त रहते  हैं . और जब वे उपलब्ध होते हैं तब सरकारी कम इतना अधिक हो जाता है कि पढ़ना उनके लिए टेढ़ी खीर  बन जाती है . आज कल  भी ऐसा ही हो रहा है. भारत में जनगणना का कर चल रहा है स्कूल खु चुके हैं किन्तु गुरूजी लोग जनगणना के कार्य  में व्यस्त हैं.  और जो समाया बचता है उसमे  भी अब चुनाव पहचान पत्र , एवं वोटर लिस्ट बनाने में  बीत रहा है. तो गुरु लोग भी करें तो करें क्या ?  इस तरह इनका पढ़ने का मुहूर्त ही नहीं निकल पता है. अब बच्चे  भी क्या करें स्कूल जाकर  इतिश्री कर आते हैं. किसी तरह साल बीत  जाता है और बच्चों को अगली कक्षा में प्रोनत कर दिया  जाता है.
विभिन्न  राज्य सरकारें  कन्या शिक्षा पर भी धन खर्च कर रही हैं फिर भी  उत्साह जनक परिणाम नहीं देखने को मिलते हैं.  यद्यपि विद्यालयों में संख्या तो बढ़ी है  परन्तु गुणवता शुन्य स्तर पर चली गयी है.  इसी कारण लोग पुलिस स्कूलों में महगी शिक्षा देने के लिए मजबूर हैं. और सरकारी हील हवाली   के कारण   ही शिक्षा का व्यवासयिकी करण हो चूका है. और इस परिपाटी आम आदमी  इन स्कूलों पढ़ा भी नहीं सकता . क्योंकि इनके खर्चे अत्यधिक हैं. एवं धिकल परिक्रिया में बच्चे और साथ में माँ बाप का इंटरव्यू  लिया जाता  है . और फिर अनपढ़ माँ बाप के बच्चे  पढने से बंचित रह जाते है.  इन पब्लिक स्कूलों कि परिक्रिया मूल अधिकारों के विपरीत है.
आज केंद्र सरकार शिक्षा का नया अधिनियम घोप्षित कर चुकी है परन्तु इन खामियों को क्या इस अधिनियम के तहेत चाक चोबंद कर दिया गया है. सरकार तो नियम और कानून बनाती है  किन्तु नौकरशाही  इसका दुरुप्युओग कर व्यवस्था को चोपट कर देते है.  हमरे देश कि नौकर शाही देश के लिए दीमक बन गयी है. इसे सुधरने कि आवश्यकता है.
शयद इन सब कारणों को देखते हुए उच्च शिक्षा के लिए सरकार ने विदेशी शिक्षा स्संस्थानों को देश में बुलाने इरादा बनाया हो .
प्रतिष्ठाओं कि इस देश में कमी नहीं रही, न है , किन्तु उपयोग नहीं हो पता है. विदेशो में जा कर हमारी प्रतिष्ठाएं अपना लोहा मनवा चुकी है.
इसलिए इसतरह कि व्यवस्था होनी चाहिए जिस में हर गरीब परिवार को आसानी से शिक्षा गुन्वातापरक मिल सके. अध्यापकों को सिर्फ शिक्षा के कार्यों में ही लगाना चाहिए . जनगणना मतगणना मतदान , आदि सरकारी सर्वे  में प्रायमरी अध्यापकों को बिलकुल  नहीं लगाना चाहिए . सबसे पहले प्रायमरी शिक्षा के स्तर को ही ठीक करना पड़ेगा.  तभी उच्च  शिक्षा कि बारी आती है.