बुधवार, 14 अप्रैल 2010

लेडिस सीट

क्रमोत्तर...
यही श्रुवात है महिलाओं के सशक्तिकरण की । लम्बे समय से प्रतिक्षारत विधएयक ३३ % आरक्षण संसद में पास हो जाने के बबाद की स्थिति तो और भी खतरनाक या आक्रामक हो सकती है । संभवतः आपको कही भी सीट ही प्राप्त हो । संभवतः हमारे माननीय नेतागण इस लिए डरे हुए है कि कहीं ३३% आरक्षण diye जाने के बाद हमें भइ मेट्रो कीसीट की तरह कान पाकर कर संसद की सीट से न उठा दें । और इसी लिए यह विधेयक अभी तक पास नहीं हुआ है , और आगे भ संभावना कम ही नज़र आती है। माहिलों का यह व्वहार तो अभद्र सा जान पड़ता है। क्यूंकि यदि वे भद्रता से बठने का आग्रह करेंगी तो शायद कोई भी नहीं होगा जो सीट प्रदान नहीं करेगा . prantu is vwahar se sangharsh ki hi sthiti banti है । yesa सभी को संजना चाहिए।

लेडिस सीट

भारत वर्ष में महिलाओं के लिए आरक्षण विधेयक वहुत समय से प्रतिशा रत है , महिलाएं घर छोड़ कर संसद में बथ्नेइ के लिए तैयार बठी हैंऔर इसकी श्रुवात महिलाओं नें सार्जनिक ट्रांसपोर्ट से शरू कर दे हैप्राय्ह मेट्रो एवं डी टी की बसों में ये सब देखनें को मिलता हैमहिलाये उन सीटों पर पुर अधिकार जमाती फिरती हैं जहाँ मेट्रो में " महिलाओं के लिए अरक्षित" लिखा हुआ हैउस पूरी रो पर वे अपना अधिकार जमती हैंइन सीटों पर अधिकांशतः ७०% महिलायें ही बठी रहती हैं , और यदि कोई एक आध पुरुष बैठे हों तो उन्हें उठाने के लिए महिलाएं पूरे जोर लगा कर कहती सुने देती हैं की यह लेडिस सीट है , या कई युवा लड़कियां भी किसी बुजुर्ग पुरुष के सामने इस तरह से कड़ी होंगी की बेचारा पुरुष शर्माकर सीट छोड़ देता है