सोमवार, 9 मई 2016

गंगाजी का जन्मदिन- अक्षय तृतीया।




वैशाख शुक्ल पक्ष  की तृतीया को अक्षय तृतीया  का त्योहार भारत मे बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। प्रायः इस दिन पर लोग स्वर्ण व चांदी के धातुओं को व इन से निर्मित आभूषण खऱीद कर मनाते हैं। इस तिथि को अबूझ मुहूर्त या चिरंजीवी तिथि भी कहते हैं। इसी दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी का जन्म हुआ था और गणेश जी ने व्यास जी के साथ महाभारत लिखना प्रारम्भ किया। इस दिन लोग व्रत और गंगा स्नान कर,  पुण्य अर्जित करते हैं।


अनेक कहानियॉ प्रचलित है। आज ही के दिन,भारतवर्ष को जीवन प्रदान करने वाली पापनाशिनी पुण्य सलिला गंगां का जन्म भी पर्वत राज हिमालय के घऱ,मेनका के  गर्भ से ज्येष्ठ पुत्री के रूप मे हुआ।
               तृतीया नाम वैशाखे शुक्ला नाम्नाक्षया तिथिः।
               हिमालय गृहे यत्र गंगा जाता चतुर्भुजा ।।
               वैशाखे मासिशुक्लायां तृतीयायां दिनार्धके।
               बभूव देवी सा गंगा शुक्ला सत्युगाकृतिः।।
                                           वृहद्धर्मपुराण।

सती के देह त्याग के पश्चात् देवताओ ने महेश्वरी की स्तुति कर पुनः महादेव के वरण की प्रार्थना की,तभी वह स्वयं कीं इच्छानुकूल हिमालय के घर ज्येष्ठ पुत्री गंगा के रूप में प्रकट हुयी। तदन्नतर वे देवताओ के अनुरोध पर शिव के साथ कैलाश धाम चली गयी। ब्रहमा के अनरोध पर अन्तर्धानांश से अर्थात् निराकार रूप मे कमण्डलु में स्थित हो गयी।तत्पश्चात भगवान शंकर गंगा जी को लेकर वैकुण्ठ में गये। वहां विष्णु के आग्रह पर महादेव रागिनी गाने लगे,तो भावविभोर होकर विष्णु स्वयं  रसमय होकर द्रवीभूत हो गये, उसी समय ब्रहमा जी ने उस द्रव को अपने कमण्डलु से स्पर्श कराया,स्पर्श होते ही गंगा जी स्वयं निराकारा  से  नीराकार अर्थात् जलमय हो गयी।
 
दीर्घावधि तक गंगा जी कमण्डलु मे ही अवस्थित रही। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कियाऔर शुक्राचार्य के व्यवधान के पश्चात् भी राजा बलि वामन भगवान को तीन पग जमीन प्रदान करते है। जैसे ही श्री विष्णु एक पग मे धरती और दूसरे मे वैकुण्ठ धाम नाप देते


है, उसी समय ब्रहमां जी भगवान विष्णु के पैर को कमण्डलु के जल से प्रक्षालित कर देते हैं, और इस प्रकार वह जल पूर्ण रूप से ब्रहमद्रव मे परिवर्तित हो गया।

देवी भागवत के अनुसार लक्ष्मी, सरस्वती व गंगा, तीनो ही भगवान विष्णु की पत्नियां हैं। किन्तु तीनो में सदैव ईर्ष्यां के कारण कलह व्याप्त रहता था।  एक बार सऱस्वती और गंगा के झगड़े के दौरान लक्ष्मी ने गंगा का बचाव किया और सरस्वती को झगड़ा खत्म करने को कहा, परन्तु सरस्वती ने लक्ष्मी को ही शाप दे डाला कि तुम मृत्यु लोक मे जाकर वृक्ष एवं नदी स्वरूपा हो जाओ तथा गंगा को भी मृत्युलोक मे नदी रूप मे परिवर्तित होकर वहां के पाप धोने का शाप दिया। तब गंगा ने भी सरस्वती को शापित कर नदी रूप मे मृत्यु लोक जाने का कहा। 

तदनन्तर विष्णु जी ने तीनो को पास  बुलाया  और कहा लक्ष्मी तुम अपनी कला से पृथ्वी पर जाओ। वहां राजा धर्मध्वज के यहां जाकर स्वयं प्रकट हो जाना। कुछ समय बाद भारतकी पुण्य भूमि मे त्रैलोकपावनी तुलसी के रूप मे तुम्हारी ख्याति होगी, परंतु अभी तुम सरस्वती के शाप से आर्यधरा पर पद्मावती सरिता बन कर जाओ।

गंगे ! तुम्हे सरस्वती का शाप पूर्ण करने के लिये  अपने अँश से पापनाशनी पवित्र सरिता बन कर भारतवर्ष में, राजा भगीरथ के तप और अनुरोध पर जाना पड़ेगा। वहॉ धरातल पर तुम भगीरथी के नाम से प्रख्यात होगी,तथा मेरे अंश से समुद्र की पत्नी होना स्वीकार कर लेना।

“भारती!”प्रभु ने सरस्वती से कहा। तुम गंगा के शाप निहित अपनी एक कला से आर्यभूमि पर जाओ तथा पूर्ण अंश से ब्रहम सदन जाकर उनकी कामिनी बन जाओ,और गंगा अपने पूर्ण अंश से शिव के यहां जाये।  तथा लक्ष्मी को पूर्ण अंश से स्वयं के पास रहने का निर्देश दिया।
इस प्रकार इनके शाप भी भारतवर्ष के लिये वरदान साबित हुये। किन्तु लक्ष्मी के अनुरोध पर भगवान विष्णु बताते है कि कलिके पांच सहस्र वर्ष व्यतीत होने पर तुम  सरिता स्वरूपणी तीनो का उद्धार हो जायेगा और पुनःवैकुण्ठ वापस आ जाओगी।