बुधवार, 21 अप्रैल 2010

समलैंगिकों का अधिकार- प्रकृति के खिलाफ

पूरे ब्रह्माण्ड में प्रकृति की सत्ता सबसे सम्पूर्ण और ताकतवर है। मनुष्य हमेशा से इसका दोहन एवेम शोषण करने पर लगा हुआ है । व्यक्ति अपनी सत्ता को उंच उठाने की कोशिश के चलते दुनिया को विनाश के कगार पर ले जा रहा है । व्यज्ञानिक युग की धरा ने तो मनुष्य एवेम प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर दिया है ।

जब जब प्रकृति के खिलाफ मनुष्य ने आन्दोलन चलाये है तब तब नुक्सान उठाना पड़ा है । प्रकृति के विपरीत जाकर उसके स्वरुप को बदलना महँगा पड़ता है।

आज ग्लेशियरों का पिघलना जलवायु का बदलना आदि सभी मनुष्य की दें है ।

अभी देखें तो सेक्स पर बी दुनिया के लोग अप्राकृतिक अधिकार की मांग ही नहीं बल्कि उसके कानूनी मान्यता भी मान रहे हैं। सम्लागिको को दुनियाभर में ये बहस चिद गयी है की इन्हें भी उसी तरह शादियाँ करने का अधिकार दिया जाना चाहिए । किन्तु अभी तक भारत जैसे देश में बिना किसी मान्यता के भी समलैंगिक अपना काम करते रहे हैं और अभी तक किसी को एस कार्य के इए सजा भी नहीं हुई है। तो फी कानूनइ मान्यता की क्या आवशयकता है?

जो भी समलैंगिक बना, वह जनम से नै था , उसने या तो निराशा जनक स्थिति में यह काम शुरू किया, या मौज मस्ती के लिए! जन्मजात कोई भी समलैंगिक नहीं होता है । तत्पश्चात उसे यही दुनिया मजबूरी में अछि लगाने लगती है। यह भी अप्राकृतिक काम है । और विनाश की ही और ले जाता है ।

इसकी परिणति तो आइसलैंड में ज्वालामुखी फुटकर होती है। या गंगा का पानी पत्थरो के नीचे जा रहा है।

यह तो एक छोट उदाहरण है विनाश की गाथा लम्बी है। प्रकृति के विपरीत चलने का भुगतान कारन ही पड़ता है।

मैं बात कर रहा हों समलैंगिको की । उन्हें क़ानूनी रूप में अयाशी का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए।

बुधवार, 14 अप्रैल 2010

लेडिस सीट

क्रमोत्तर...
यही श्रुवात है महिलाओं के सशक्तिकरण की । लम्बे समय से प्रतिक्षारत विधएयक ३३ % आरक्षण संसद में पास हो जाने के बबाद की स्थिति तो और भी खतरनाक या आक्रामक हो सकती है । संभवतः आपको कही भी सीट ही प्राप्त हो । संभवतः हमारे माननीय नेतागण इस लिए डरे हुए है कि कहीं ३३% आरक्षण diye जाने के बाद हमें भइ मेट्रो कीसीट की तरह कान पाकर कर संसद की सीट से न उठा दें । और इसी लिए यह विधेयक अभी तक पास नहीं हुआ है , और आगे भ संभावना कम ही नज़र आती है। माहिलों का यह व्वहार तो अभद्र सा जान पड़ता है। क्यूंकि यदि वे भद्रता से बठने का आग्रह करेंगी तो शायद कोई भी नहीं होगा जो सीट प्रदान नहीं करेगा . prantu is vwahar se sangharsh ki hi sthiti banti है । yesa सभी को संजना चाहिए।

लेडिस सीट

भारत वर्ष में महिलाओं के लिए आरक्षण विधेयक वहुत समय से प्रतिशा रत है , महिलाएं घर छोड़ कर संसद में बथ्नेइ के लिए तैयार बठी हैंऔर इसकी श्रुवात महिलाओं नें सार्जनिक ट्रांसपोर्ट से शरू कर दे हैप्राय्ह मेट्रो एवं डी टी की बसों में ये सब देखनें को मिलता हैमहिलाये उन सीटों पर पुर अधिकार जमाती फिरती हैं जहाँ मेट्रो में " महिलाओं के लिए अरक्षित" लिखा हुआ हैउस पूरी रो पर वे अपना अधिकार जमती हैंइन सीटों पर अधिकांशतः ७०% महिलायें ही बठी रहती हैं , और यदि कोई एक आध पुरुष बैठे हों तो उन्हें उठाने के लिए महिलाएं पूरे जोर लगा कर कहती सुने देती हैं की यह लेडिस सीट है , या कई युवा लड़कियां भी किसी बुजुर्ग पुरुष के सामने इस तरह से कड़ी होंगी की बेचारा पुरुष शर्माकर सीट छोड़ देता है