आज पूरी दुनिया पिछले एक महीने से कोरोना वायरस के आक्रमण के कारण बन्दी करण के तहत
थम सी गयी है। सब कुछ अप्रत्याशित सा लग रहा है। यह वायरस चीन से चलकर,महासागरो को पार करता हुआ, मजबूत सीमाओ को तोड़ता हुआ,बेहद शक्तिशाली सिहांसनो को डोलता हुआ,दुनिया को अपने अधिकार क्षेत्र मे करता जा रहा है। जब विज्ञान और विकास के चरमोत्कर्ष,का अनुभव मनुष्य कर रहा था तब इस वाय रस ने उसे बेबस और लाचार कर दिया है।
मनुष्य हमेशा से महत्वाकांक्षी रहा है। प्रकृति का दमन पूरे अधिकार से किया। इन्ही गतिविधियो के कारण यह कहा जाता है कि कुछ समय बाद समुद्रो के जल स्तर मे बढ़ोतरी हो सकती है। कई ग्लेशियर पिघलने के कगार पर है। नदियो मे औद्योगिक कचरा डालने से उनके प्रवाह व जल की गुणवता पर विपरीत प्रभाव पडा है। वनस्पति , जंगलो का अनावश्यक कटान, वनचरो का बध,के कारण अनेक प्रजातियॉ या तो विलुप्त हो गयी है या फिर विलुप्ति के कगार पर खड़ी है। हिमालय व आल्पस की ऊची श्रृंखलाओं तथा महासागरो को भी प्रदूषित करने से नही छोड़ा। ऐसा भी नही है कि विज्ञान को ऐसे खतरो का आभास नही है, किन्तु मनुष्य की विजयी होड़ उसे उकसाती रहती है।
आज लगभग भारत समेत विश्व के अधिकॉश देश बन्दीग्रसत( लाकडाउन ) हैं। एकाएक सारी हलचल सिमट सी गयी है। सारे बाजार, औद्योगिक कल कारखाने, पर्यटन यातायात सब कुछ थम सा गया है। सड़कें वीरान सी हो गयी है।समुद्री तट भी वीरान हो चुके है। लोग सिर्फ अपनी देहलीज पर सिमट गये है। इस वीरानगी मे कुछ सकारात्मकता भी प्रतीत होती है। बड़े बड़े महानगरो का वायु प्रदूषण, कल कारखानो एवं गाड़ियो से निकलने वाली जहरीली गैसे कम होने लगी है। इतना ही नही गंगा नदी के जल प्रदूषण मे कमी पायी गयी । कारण साफ है कि मानव का इन कुछ दिनो से हस्तक्षेप कम हुआ है। पर्यटको की दखलन्दाजी से समुद्री तटो का प्रदूषण मे भी कमी आंकी जा रही है। इन कमियो को दूर करने के लिये सरकारे तमाम माथापच्ची करते है किन्तु कुछ भी लाभ नही होता है। है न विचित्र बात! और कई टन कार्बन उत्सर्जन अचानक कम हो गया है। इस प्रकारन्तर मे समूचे विश्व को प्रकृति के साथ न्याय करने का अवसर भी मिल गया है।
स्वास्थ्य के लिये हवा साफ चाहिये,कोरोना भी फेफड़ों पर आक्रमण करता है,इसलिए ठीक होने के लिए साफ हवा की भी आवश्यकता होगी । निश्चित है मरीजो के उपचार मे ये लाभदायक होगा। आशा ही नही विश्वास भी है कि मनुष्य पुन्: विजयी होगा। किन्तु कुछ प्रश्न चिन्हो के साथ।
इसी सन्दर्भ मे आज एक सुखद समाचार भी देखने को मिला। बताया जा रहा है कि फिलीपीन्स का समुद्रीतट जो पर्यटको से भरा रहता था आजकल वीरान सा है।और इस वीरानगी मे समुद्री गुलाबी जेलफिश ने तट पर अपना डेरा डाल दिया है। स्पष्ट है कि मानवीय व्यवधानो के कारण ये भी अपनी रक्षा के लिए समुद्र के निचले तल पर जाने के लिये मजबूर है। जबकि आज वे स्वयं सूर्य दर्शन के लिये बाहर निकली है।
और ऐसा भी नही है कि मनुष्य को प्रकृति ने कभी चेतावनी न दी हो किन्तु वह समझने को तैयार ही नही। सागरो मे उठती सुनामी, नदियो मे आती प्रलयंकारी बाढे ये सब उसकी वे आवाजे थी जिन पर कभी मानवीय विवेचना हुयी ही नही। वह तो स्वयं के ही बचाव के रास्ते ढूंढता रहा है। यह परजीवी कोराना भी मानवीय भूलो के रूप मे उत्पन्न हुआ है और जिसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।
निश्चित बात तो यह है कि मनुष्य इस आपदा पर विजयी होगा, किन्तु फिलहाल यह क्षुद्र जीव ही भारी पड़ रहा है। और यह भी सीख दे रहा है कि प्रकृति की अवहेलना कितनी भारी पड़ती है। बताया जा रहा है कि चीनऔर वियतनाम ने तो अब कीड़े मकोडे वन्य पशुओ को खाने पर प्रतिबन्ध लगाना प्रारम्भ कर दिया है। जो कि इस वायरस की उत्पति का मुख्य कारण माना जा रहा है।
5/4/2020