शुक्रवार, 25 मार्च 2011

एक थी गौरा देवी !

गौरा देवी

नेतृत्व क्षमता  और विवेक शील बुद्धिमता सिर्फ शिक्षित लोगों  में ही नहीं 
पनपती  है, यह तो ह्रदय से अनुकंपित, स्नेह, और लगाव तथा मस्तिष्क की वैचारिक चपल  अनुगूँज  से प्रस्फुटित होती है, व्यक्ति की वैचारिक क्षमता, कार्यशीलता और अनुभूति की गति  पर सदा निर्भर  करता है, जितनी अधिक कार्यशीलता होती है उतनी अधिक वैचारिक  क्षमता और अनुभूति की व्यग्रता  बढती चली जाती है. यही कार्यशीलता उसे कार्य की दक्षता  से नेतृत्व की ओर अग्रसर करती है.  इसी का परिणाम क्रांति में स्पंदित हो उठता है.  प्रायः क्रांतियाँ शांति और उपकारी दृष्टिकोणों से ही कार्यशील होती है.  तब इस कार्य का नेतृत्व कौन  कर रहा है इसके निर्धारण  का कोई मानदंड शिक्षा में  ही निहित नहीं होता है,  बल्कि अनपढ़ और अशिक्षित  व्यक्ति भी इतना संवेदन शील होता है किउनकी अभिव्यंजना पर पूरी सफल  क्रांति आ जाती है.

इसी तरह कि अभिब्यंजना से अनुकंपित, और अभिभूत थी शैल पुत्री गौरादेवी . पूर्णतया अशिक्षित, व् अनपढ़ एक निर्धन एवं हिमालयी जनजातीय परिवार  में,  चमोली जिले कि नीती घाटी के लातागाँव में १९२५ जन्म हुआ था इस हिम पुत्री का.  गौरा के जीवन की गाथा भी बड़ी संघर्ष पूर्ण है .१२ वर्ष की आयु में विवाह, १९ वर्ष में एक पुत्र को जन्म देकर मातृत्व कि सुखानुभूति के बाद, २२ वर्ष की ही आयु में पति का आकस्मिक स्वर्गवास .विधवा का जीवन यों तो आज भी विकटहै किन्तु  ५० के दशक में स्थिति कितनी भयावह रही होगी कल्पनातीत है,  और तब सयम, और विवेक के साथ जीवटता से जीना आसान काम नहीं . अपने अटल विश्वास, और संघर्ष शील रहकर  कभी हार नहीं मानी इस वीरांगना नें, जिसने देश नहीं पूरे विश्व में  एक पर्यावरण कि क्रांति ला दी .                                                                                                                              
चिपको के दृश्य
  ७० के दशक में सरकार नें जंगलों से वनों के कटान की भारी योजना बनायीं इस तरह से सरकार व्यापारिक  लाभ  कमाना चाहती थी. तब श्री चंडी प्रसाद भट ने १९६४ में दशोली ग्राम स्वराज्य  संस्था की स्थापना की . तत्पश्चात मार्च १९७३ में सरकार नेचमोली जिले के  मंडल फाटा के जंगलों में कटान का  आदेश दिया, मार्च से ही ठेकेदार जंगलों में डेरा डालने लगे. तब २४ अप्रैल १९७३ को दशोली  ग्राम स्वराज्य  के कार्य कर्ताओं के साथ ग्राम वासियों ने भारी विरोध किया था जंगलों  के कटान  का. तब श्री चंडी प्रसाद  के नेतृत्व में लोगो ने पेड़ो से चिपक जंगलों को बचाया यही से जन्म हुआ था चिपको आन्दोलन का. सरकार ने अपने आदेश जन विरोध के कारण वापस ले लिए.

पुनः जनवरी १९७४ में सरकार ने चमोली जिले के नीती घाटी के जंगलों  में कटान  की योजना बनायीं  और तब मंडल फाटा की मुहिम पैन्खाडा  ब्लाक के नीती घाटी के रैणी गाँव के जंगलों  में फ़ैल गयी.   यहाँ  इसकी  सूत्रधार थी गौर देवी. २६  मार्च १९७४ को जंगलों में कटान का कार्य शरू होना था. गांववासियों  को पता चलने पर उन्होंने भारी विरोध दर्ज किया. ठेकेदारों ने विरोध में कार्य स्थगित कर रात में कटान की योजना बनायीं. किन्तु   शाम को गावं की एक लड़की  को इसकी भनक लग गयी. और तब उसने यह  सूचना गौरादेवी को दी. गौरा देवी  रैणी गावं की महिला समिति की अध्यक्षा भी थी. इस समय गावं में पुरुष वर्ग भी मौजूद न था

गौरा ने गाँव की महिलाओं को  एकत्रित कर जंगल  की ओर कूच किया. और पेड़ों को आलिंगन बध कर एक चेतावनी दे डाली ठेकेदारों को . कुल्हाड़ी पहले हम पर चलेगी फिर इन पेड़ों पर.  अपने आंचल की छाया से इन वृक्षों  को बचाया आततायियों के चंगुल से  और पूरी रात निर्भय और बेखोफ होकर जग्वाली की अपने शिशुवत पेड़ों की.  यही से आन्दोलन की भूमिका तेज हो गयी और आग की तरह पूरे उत्तराखंड  में फ़ैल गयी  .



तब इसी चिपको आन्दोलन को पुनः दिशा दी श्री चंडी प्रसाद भट्ट ने .तदुपरांत भट्ट जी को श्री सुंदर लाल बहुगुणा का  सानिध्य प्राप्त हुआ और इन दोनों के नेतृत्व में  चिपको आन्दोलन सिर्फ उत्तराखंड तक ही नहीं सीमित रहा   बल्कि पूरे विश्व पटल पर  पर्यावरण को नयी दिशा मिली . यदि गौरा देवी अपनी जीवटता और अदम्य सहस का परिचय  न देती तो शायद आज ग्लोवल वार्मिंग की स्थिति और भी भयावह होती. उत्तराखंड में  औषधीय गुणों की वनस्पतिया आज देखने को भी न मिलती.  इसी के प्रतिफल में इन दोनों नेताओं को मैग्सेसे  पुरुष्कार से भी सम्मानित किया गया .  

जब रैणी के जंगलों में तहकीकात के लिए तहसीलदार एवं अन्य वन कर्मी गए तो उन लोगों ने गाँव वासियों का समर्थन  करते हुए  ठेकेदार के आदमियों को बंदी बनाना चाहा तो  गौरा देवी ने  कहा था "  साहब इन लोगों का कोई कसूर नहीं ये तो सिर्फ आदेश का पालन कर रहे है  इन्हें छोड़ दो "    आप कल्पना कीजिये की क्षमा दान की भी कितनी उच्च अवस्था थी इस महिला की. वृक्षों को तो बचाया ही किन्तु अपराध करने वालों को क्षमादान दिया. साक्षात् हिम पुत्री गौरी  थी.
चिपको आन्दोलन को २६ मार्च २०११ को पूरे ३७  वर्ष हो जायेंगे  मुझे याद नहीं आता कि कभी   इस आन्दोलन  का भी वार्षिक  दिवस मनाया जाता हो या फिर  कभी किसी ने चिपको कि जननी गौरा को याद किया हो ! इस महान वीरांगना को शत शत नमन ! 
  चिपको के उद्घोष सूत्र थे :-        
          क्या है जंगल के उपकार, मिटटी पानी और वयार,
         मिटटी पानी और वयार, जिन्दा रहने के आधार .