सोमवार, 7 जून 2010

लेखक की संवेदन शीलता

मैंने अभी किसी ब्लॉग में एक महिला द्वारा लिखा हुआ लेख पढ़ा । इस लेख में लेखिका महोदया ने किसी टिपण्णी कार की टिपण्णी से रुष्ट होकर लिख डाला। कारणसिर्फ इतना था कि टिपण्णी कार नें उन्हें कलम की दिशा बदलने की सलाह दे डाली । क्यूंकि महिला लेखिका महिलोओं से सम्बंधित लिखती हैं। यों तो मैंने न तो टिपण्णी पढ़ी और न ही लेखिका का वह लेख जिस पर अमुक टिप्पणी आई ।


लेखिका महोदया नें इस बात पर एक लम्बा चौड़ा नया लेख लिह दिया है। इसमें उन्होंने महिलाओं के वस्त्र पहनने और न पहनने के कई उद्धरण दे डाले । यद्यपि उनकी ये सब बातें तथ्य परक हैं । किन्तु जितने भी उदहारण दिए गए है सभी १०० से लेकर १००० वर्ष पुराणी बातें हैं।


संसार परिवर्तन शील है और समय के साथ सभी धर्मं, जाती, देश , एवं संस्कृतियों नें परिवर्तन को अपनाया और मानव विकास इसी क्रम विकसित हुआ । पुरुष क्या पहनता ,क्या खाता, क्या पसंद करता है यह विचारिन्य नहीं है किन्तु एक महिला क्या करती है क्या पहेनती है के पसंद करती है तो एह क्यों विचारनीय है। इसलिए की एक महिला इन सवालों को उठा रही है। नहीं!


आज के सन्दर्भ में वे सभी तर्क लगभग तार्किक नहीं है की कोई महिला किसी क्षेत्र में बिना ब्लाउज, या बिना पेटीकोट पहने रहती हैं या रहनाचाहती हैं इसी कल्पना करना आज अपने को १००० साल पीछे धकेलना है। महोदया ये भूल गयी हैं कीइस देश में महिलाओं को सबसे अधिक सम्मान भी दिया जाता है । विश्व में एसा कही नहीं मिलता है । यहाँ नारियो की पूजा भी की जाती है आज ही नहीं सदियों से । तभी अर्ध नगन जीवन यापन कर भी नारियां सुरशित रही हैं । अब अगर आप इस युग में भी अर्ध नग्न या निर्वस्त्र रहना चाहें तो आपकी मर्जी । वैसे क्या आप किसी शादी मेंआज के युग में अर्धनग्न , बिना ब्लाउज, या बिना पेटीकोट पहने जा सकती है? नहीं । तो फिर किसी पाठक पर गुस्सा उतरना कहाँ तक जायज है।


मैं अब ये कहना चाहूँगा की एक लेखक के लिए उसके पाठक gan devtulya हैं।


aur apne pathkon ke prati is tarah ka gussa nikalna uchit nahin hai । लेखक वेहद संवेदन शील होता है टिप्पणी छोटी हो या बड़ी सलाह अछि हो या बुरी कित्नु अभद्र नहीं होनी चाहिए । अभद्रता कहीं भी कभी भी सराहनीय नहीं है । लेखक को अपने पाठकों के विचारों को उचित स्थान तो देना ही पड़ेगा न की गुस्सा हो कर एक नया लेख लिख डालो । tark apne sthaan par hote hain kintu unka kutark na banayen. sirf purush aur mahila ki ladaai ek naya sigufa banane se bachen .