शनिवार, 25 दिसंबर 2010

शिक्षा सभी के लिए , सभी के द्वारा ,सामान्य रूप से पोषित हो

भारत सरकार ने बुनियादी रूप से शिक्षा के लिए कानून तो बना लिया किन्तु इस कानून का हस्र इस तरह भयावह हो जायेगा शायद कल्पना  नहीं की होगी . आजकल दिल्ली  के स्कूलों में  भारी गहमागहमी बनी हुई है दिल्ली की सरकार  ने प्रवेश की छूट तो उन्हें  दे दी किन्तु मनमानी के लिए पूरी लगाम हाथ में रखी हुई है या यों कहे की मिल बाँट की बंदर बाँट होने जा रही  है. सभी समाचार पत्र इन दिनों  नर्सरी प्रवेश की सुर्खियाँ बनाने में लगे हुये हैं.

इन नौ निहालों को स्कूल भेजना , पढाना,  टेढ़ी खीर होती जा रही है कभी तो जमाना था लोगो को पढ़ने से लाभ नहीं दिखाई देता  था  और अब लोगो की जरूरत बनी , जागरूकता के कारण , तो शिक्षा दो कदम दूर होती जा रही  है. माध्यम वर्गीय लोगों के लिए तो  आज शिक्षा  दूभर बन गयी है  शिक्षा एक अभिशाप्प की तरह पनप रही है  जब कि कभी  अशिक्षा अभिशाप का पर्याय  हुआ करती थी .
प्राइवेट स्कूलों में फ़ीस की मात्रा इतनी  अधिक है  कि हर व्यक्ति इसे  वहन करने में  समर्थ नहीं है सरकारी स्कूलों  की हालत बदतर बनी हुई है  यहाँ तो माद्यम  और धनाड्य वर्ग के बीच एक बड़ी लाइन खींचती  हुई  दृष्टिगोचर होती है  पूंजीवादी वर्ग अपने हितों के आगे सभी का शोषण इस तरह कर देना चाहता है कि पुनः कोई भी शिक्षा के लिए किसी स्कूल को खोजना बंद कर दे . सरकारें   इन लोगों कि बंधक बनती जा रही हैं.  और ये स्कूल सरकार  को ब्लाक्मैल करने पर तुले हुए है.
प्रवेश की इतनी जटिल प्रक्रिया  बन गयी है  कि विश्वविद्यालयों व् M B A 's की CAT ,MAT  XAT आदि  प्रवेश परीक्षाएं भी कमतर लग रही हैं  कितने  ही वर्ग उसमे बने है एक नया वर्ग पैदा हुआ है अलुमिनी . ना जाने इन सब के पीछे लूट का मकसद है या फिर  कानून को विफल करने की  सफल कोशिश . नर्सरी  की फीस  प्रति वर्ष ३००००/ से लेकर १०००००/ और इससे भी ज्यादा हो सकती है
गरीब के बच्चों के कोटे में प्रवेश पर समर्थ व्यक्ति से फ़ीस वसूलने  का फार्मूला  भी गजब ढा रहा है.  गरीब की परिभाषा भी परिभाषित  नहीं है   अर्थात गरीब के नाम पर अमीर के बच्चों को ही  प्रवेश की चाल स्पष्ट दिखाई दे रही है, पोईन्ट्स, और लाटरी के शिष्टम, दोनों में अंतर  किया जा रहा है हर स्कूल अपने मन मफिग पॉइंट्स  या लाटरी शिष्टम अपना  रहा है हित स्कूल का ही साधा  जा रहा है
इतनी जटिलताये  उन बच्चों के लिए जिन्होंने अभी पूरी तरह से आंख भी ना खोली है जिनके प्रकृति के साथ अठखेलियाँ करने के दिन है क्यों उन्ही के लिए इस तरह की जटिलताएं पनप रही है. समाज और सरकार,इन बच्चों के जीवन से खिलवाड़ करके,  .   क्या प्राप्त करना चाहती है ?
इतनी जटिलताओं में घिरने के बजाय तो इन्हें सीधी MBA प्रवेश की पात्रता क्यों ना दी जाय  ताकि बड़े होने पर पुनः M B A के लिए पात्रता ना हाशिल करनी पढ़े ?  शिक्षा मूल अधिकार है उसे हर व्यक्ति और बच्चे के लिए उपलब्ध होना  चाहिए  उसके दरवाजे तक .  धन की कीमत पर शिक्षा  की दुकानदारी ने सभी मूल्यों को चौपट कर दिया है. समाज की विकृतियाँ , बेरोजगारी . इस अवमूल्यन की प्रमुख देन हैं .  शिक्षा सभी के लिए , सभी के द्वारा ,सामान्य रूप से पोषित हो .  तभी समाज का समुचित विकास संभव है