मंगलवार, 21 सितंबर 2010

गंगे कुछ पल रुको !

गंगे कुछ पल रुको !
आक्रोश को रोको
क्रोध को थामो
पीड़ा का क्रंदन , स्पंदन ,
व्यथा ,निश्वास , आह  और कराह
समेट लो सिसकियों  में
गंगे कुछ पल रुको !
तुम्हारे क्रोध से, आक्रोश से
मैती आकुलित हैं
व्यथित, व्याकुल , निस्तब्ध हैं
प्रलयंकारी गर्जन से
माँ कैलाशी प्रार्थना बद्ध  है
बद्री केदार भी नत मस्तक हैं
हिम गिरी  भी व्याकुल है
पुकार रहे हैं
गंगे कुछ पल रुको !
 सदियों से दे रही हो शीतल निर्मल अमृतमयी जल
पाप कष्टों का कर रही हो हरण - प्रबल !
निर्विकार निर्निमेष धरा का पग पग करती हो प्रक्षालन !
तो तुम्हे क्या दे रहे हैं ये मानव जन
मैला ! विष प्रदूषण  !
और  विषमयी बना अमृतमयी जल !
तो यह गर्जन , आक्रोश क्यों न हो !
दमनीय हो चुकी है हिम्पुत्री
कुछ पुत्रियाँ तो सहती हैं 
कुछ प्राण निछावर करती हैं
कितु कुछ  सीमा तोड़ आक्रोशित , क्रोधित  होती है
जीवन सबका है जीवन के लिए !
तुम भी तो आक्रोश में हो
क्रोध में हो
प्रलयंकारी  विनाशकारी रूप लिए हो
सब डरे हुए  है  भयभीत हैं !
गंगे कुछ पल रुको
आक्रोश सहज है
कितु मैती पुकार रहे हैं
नतमस्तक है,
शांत और मौन की प्रार्थना कर रहे है
और पूछ रहे हैं,
ऐसा प्रलय क्यों
ऐसा हाहाकार क्यों
थोडा शांत
थोडा मौन
गंगे कुछ पल रुको !



( वर्ष २०१० अतिवृष्टि के रूप में जाना जायेगा उत्तराखंड में अति वृष्टि ने प्रलय  की स्थिति पैदा कर दी है  यह भी मानव निर्मित विपतियाँ है  गंगा और यमुना  अपने उफान पर है न जाने कितना उबाल आयेगा इन जीवन दायिनी  नदियों में . बाढ़ का प्रकोप ने सभी को भयभीत कर दिया है )
गिरधारी खंकरियाल    

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

हिंदी दिवस और राज भाषा

आज हिंदी दिवस है  सभी हिंदी लेखकों, लेखिकाओं  एवं ब्लोगरों  को हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं . हिंदी ने विज्ञापनों और फिल्मों के माध्यम से  आज संपर्क भाषा बनने में कामयाबी हासिल  की है . किन्तु बावजूद इसके  यह पूर्णतया ग्राह्य भाषा नहीं बन सकी. फिल्मों में ही देखिये  बहुत सारे  अभिनेता , अभिनेत्रियाँ  हैं जिन्हें हिंदी के नाम से ही परहेज है . जबकि वे सभी हिंदी के ही बलबूते अपना परचम लहरा  रही हैं . उन्हें संवाद रोमन अंग्रेजी में लिख दिया जाता है और फिर वे इसे धारा प्रवाह से बोल दिया कर देते है.  कमोवेश यही स्थिति  विज्ञापनों की भी है  क्योंकि यंहां भी काम करने वाले लोग  इसी श्रेणी के होते हैं.
इतना ही नहीं संविधान में  राजभाषा  का दर्जा प्राप्त भाषा सरकारी कामकाज की भाषा आज तक नहीं बन पाई .यह एक मात्र उत्तर भारत की भाषा बन कर रह गयी है . केंद्रीय सरकारी कार्यालयों में सारा काम अंग्रेजी में होता आ रहा है .  सरकारी अधिकारी और मंत्रिगन तो अंग्रेजी से ही अपना स्तर ऊँचा बनाने पर लगे है  हिंदी बोलने और सुनने वाले की कोई कीमत यहाँ नहीं है. राज्यों ने तो अपने अपने स्थानीय भाषा को राजकीय कार्यों के लिए  प्रयोग किया है  सिर्फ उत्तर भारत के कुछ हिंदी भाषी  राज्य ही सरकारी काम हिंदी में करते हैं
हमारी संसद तक में लगभग सभी चर्चाये  एवें अन्य विधिक  कार्य अंग्रेजी में होते है अधिकांश सदस्य  अंग्रेजी में बोलना पसंद करते हैं. दक्षिण एवं पूर्वोत्तर के सांसद तो हिंदी से गुरेज ही करते हैं  इतना ही नहीं हमारे उत्तर भारतीय प्रधान मंत्री तक हिंदी बोलने से परहेज करते हैं.सभी विधायी  दस्तावेज अंग्रेजी में तैयार  होते हैं  कब समाप्त होगी  ये अंग्रेजी  की गुलामी ?  अधिकारी अग्रेजी बोलते हैं अंग्रेजी लिखते हैं हिंदी में बतियाना उनके कद को नीचे कर देता है .
हाँ श्रीमती सोनिया  गाँधी की दाद देनी पड़ेगी विदेशी महिला होकर भी राजनीति की पारी शुरू करते हुए रोमन हिंदी लिख कर पढना प्रारंभ किया था किन्तु यह महिला आज धारा प्रवाह  हिंदी बोलने लगी है  लगभग सभी भाषणों में चाहे संसद के अन्दर हों या बाहरउन्होंने हिंदी का प्रयोग किया है . हमारे सांसदों को इससे शिक्षा  ग्रहण करनी चाहिए विशेष कर दक्षिण भारतीयों को . जब एक विदेशी व्यक्ति हिंदी बोले सकता है तो अन्य क्यों नहीं .
हमारे देश की माननीय अदालतें भी हिंदी  से गुरेज ही करती हैं . अभी एक दो दिन पूर्व एक अखबार की खबर थी कि माननीय न्यामूर्ति ने किसी याचिका करता को शालीनता का पाठ पढ़ने के लिए  फटकार लगाई क्योंकि वह  व्यक्ति बार बार जबाव "या  या " यानि एस  एस  चलताऊ अंग्रेजी  में दे रहा था . उसे बताया गया कि अदालत में या या के बजाय  मी लोर्ड शिप , माय लोर्ड शिप आदि  सम्मान जनक शब्दों का प्रयोग सिखाया  गया  यह भी बताया गया कि कौन सा शब्द कब और कैसे प्रयोग किया जाता है  हैरानी  कि बात है हमारी आजाद अदालते अंग्रेजी के आगे नतमस्तक हैं . क्या हिंदी में इतने सम्मान  जनक शब्दों का आभाव है की उनसे अदालत की शालीनता में खलल पड़ता हो . क्यों  नहीं माननीय, परम आदरणीय , पञ्च परमेश्वर, न्याय पिता आदि अलंकरण  क्या कम हैं अदालत की शालीनता को बरकरार रखने के लिए !.
हिंदी के लेखक वर्ग से अनुरोध है हिंदी को इतनी रोचक बनायें की दूर देश से भी लोग इसे पढने और सीखने के लिए स्वयम लालायित हो उठे . इसे सिर्फ संवैधानिक  राजभाषा  ही नहीं,  संपर्क और कार्य की राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा  के साथ साथ विश्व भाषा बनाना  होगा   अंग्रेजी के किले में सेंध तो लगानी ही होगी

शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

जीवन पूर्ति का मर्म



Please read complete mail.
रोजानजो खाना खाते हो वो पसंद नहीं आता ? उकता गये
............ ... ........... .....थोड़ा पिज्जा कैसा रहेगा ? 
www.kute-group.blogspot.com
नहीं ??? ओके ......... पास्ता ?
नहीं ?? .. इसके बारे में क्या सोचते हैं ?
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आज ये खाने का भी मन नहीं ? ... ओके .. क्या इस मेक्सिकन खाने को आजमायें ? 
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दुबारा नहीं ? कोई समस्या नहीं .... हमारे पास कुछ और भी विकल्प हैं........     
ह्म्म्मम्म्म्म ... चाइनीज ????? ?? 
www.kute-group.blogspot.com
बर्गर्सस्स्स्सस्स्स्स ? ??????? 
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ओके .. हमें भारतीय खाना देखना चाहिए ....... J   दक्षिण भारतीय व्यंजन ना ??? उत्तर भारतीय ? 
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जंक फ़ूड का मन है ? 
www.kute-group.blogspot.com

हमारे  पास अनगिनत विकल्प हैं ..... ..   टिफिन  ? 
www.kute-group..blogspot.com
मांसाहार  ? 
www.kute-group.blogspot.com
ज्यादा मात्रा ? 
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या केवल पके हुए मुर्गे के कुछ  टुकड़े ?
आप इनमें से कुछ भी ले सकते हैं ... या इन सब में से थोड़ा- थोड़ा  ले सकते हैं  ...

अब शेष  बची मेल के लिए  परेशान मत होओ....
 

मगर .. इन लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है ...
 
www.kute-group.blogspot.comwww.kute-group.blogspot.comwww.kute-group.blogspot..com   www.kute-group..blogspot.com
इन्हें तो बस थोड़ा सा खाना चाहिए ताकि ये जिन्दा रह सकें .......... 


इनके बारे में  अगली बार तब सोचना जब आप किसी केफेटेरिया या होटल में यह कह कर खाना फैंक रहे होंगे कि यह स्वाद नहीं है !! 
www.kute-group.blogspot.com
 

इनके बारे में अगली बार सोचना जब आप यह कह रहे हों  ... यहाँ की रोटी इतनी सख्त है कि खायी ही नहीं जाती.........
www.kute-group.blogspot.com
कृपया खाने के अपव्यय को रोकिये  
अगर आगे से कभी आपके घर में पार्टी / समारोह हो और खाना बच जाये या बेकार जा रहा हो तो बिना झिझके आप  1098 (केवल भारत में )पर फ़ोन करें  - यह एक मजाक नहीं है - यह चाइल्ड हेल्पलाइन है । वे आयेंगे और भोजन एकत्रित करके ले जायेंगे।
कृप्या इस सन्देश को ज्यादा से ज्यादा प्रसारित करें इससे उन बच्चों का पेट भर सकता है 

कृप्या इस श्रृंखला को तोड़े नहीं ..... 
हम चुटकुले और स्पाम मेल अपने दोस्तों और अपने नेटवर्क में करते हैं ,क्यों नहीं इस बार इस अच्छे सन्देश को आगे से आगे मेल करें ताकि हम भारत को रहने के लिए दुनिया की सबसे अच्छी जगह बनाने में सहयोग कर सकें -   
'
मदद करने वाले हाथ प्रार्थना करने वाले होंठो से अच्छे होते हैं ' - हमें अपना मददगार हाथ देंवे 
 
भगवान की तसवीरें फॉरवर्ड करने से किसी को गुड लक मिला या नहीं मालूम नहीं पर एक मेल अगर भूखे बच्चे तक खाना फॉरवर्ड कर सके  तो यह ज्यादा बेहतर है. कृपया क्रम जारी रखें....  


--
Thanks & Regards,
surjeet
(¨`·.·´¨)
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep
(¨`·.·´¨)¸.·´ Smiling!!!
`·.¸.·

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surjeet
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`·.¸.·    मुझे यह मेल से मेरे मित्र द्वारा प्रेषित किया गया  जरा सोचिये और इस दिश में भी कदम उठायें  ताकि ब्लॉगर जगत के लोग भी इन गरीब, निरीह लोगो तक अपना योग दान कर सकें . कितनी बिडम्बना है की कहीं तो आपके पास बहुत से विकल्प हैं भोजन  के लिए वहीँ दूसरी तरफ एक ऐसी दुनिया भी है जिन्हे दो जून की रोटी भी नसीब  नहीं है.वहीँ हमारी सरकार १ करोड़ टन अन्नाज गोदामों और मंडियों में सडा देती है या फिर विदेशों में पशुओं के चारे के लिए बेच देती है. पर इन निर्हों को नहीं बाँटती  है सुप्रीम कोर्ट को आदेश देना पड़ा कितु तब भी ये भूखे ही हैं . बिडम्बना की जय हो!