चित्र गूगल से साभार |
यह भारत में आयातित दिवस है. और इस दिवस की परिचर्चा में सारा भारत अंतर्विरोधी भाषाओँ में लगभग एक महीने से लगा हुआ है. मानने वाले तैयारियों में जुट जाते हैं और न मनाने वाले विरोध की अग्नि सुलगाने में शुरू हो जाते हैं. मैं इसका इतिहास नहीं जानता, किन्तु कहते है, कि कोई अंग्रेज वलेन टाइन नाम का संत था प्रेम का पुजारी था या कामदेव का अवतार .उन्ही के नाम पर यह दिवस मनाने की रीत चली आ रही है. भारत में तो कुछ ही वर्षों से ही प्रचलित हुआ, किन्तु इसका असर इतना हुआ जैसे १०४ डिग्री का बुखार चढ़ा हो.
संयोग की बात है कि भारत में वसंत पंचमी, जहाँ से वसंत ऋतू की शुरुवात हो जाती है, इसी ऋतू में वनस्पतियों में भी नव जीवन जाग उठता है, सभी फूलों की बगियाँ खिल उठती हैं खुशबू चहुँ ओर स्पंदित होती हैं हरियाली से भरी धरती भारत ही नहीं पूरे विश्व में सुंदर लगने लगती है, जैसे किसी दुल्हन को सजा दिया हो, और वलेन टाइन डे भी आसपास ही मंडराता है . और हम भी इसी के आस पास मंडराते रहते हैं.
मान्यता है कि कामदेव भी इसी ऋतू के राजा हैं और कामदेव को प्रेम का देव भी कहा जाता है यहीं से कामदेव के बाणों की बौछार से, युवक युवतियों में प्रेम का संचार होने लगता है, यही एक ऐसा मौसम है जब लोगों का प्रेम फलता फूलता और अपने चरम उपभोग तक प्राप्त होता है. किन्तु हम भारतीय वसंत पंचमी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक नहीं पंहुचा सके. प्रचारित करना तो दूर की बात कई वालेन टाइन डे मनाने वाले लोगो को तो मालूम ही नहीं होता है कि वसंत पंचमी कब आयी और कब चली गयी. ऋतू राज कि आहट से दूर रहते हैं
हम लोग पश्चिम अनुगामी होते जा रहे हैं ये मान कर चलते हैं कि पश्चिम की हर बात अच्छी है हर सिद्धांत का जन्मदाता पश्चिम है, और अपने रीती रिवाजों की उपेक्षा करते जा रहे हैं . मैं इस दिन को मनाने के विरोध में तो नहीं हूँ, किन्तु इसकी कीमत पर भारतीयता के लोप का खतरा उठाने के पक्ष में भी नहीं हूँ.
आज बाज़ारों में रौनक बनी हुई है बड़े बड़े, गुलाब की पंखड़ियों से बने दिल्नुमा आकृतियाँ सजी पड़ी हैं न जाने कौन खरीदेंगे . किसीने इनमे बीच में शीशा लगा दिया तो किसी पर मोतियों की माला जैसी सजा दी. इन्हें देख कर तो लगता है समूचा विश्व ही भारत से दिल्नुमा फूल खरीदेगा . इसके साथ वे सभी स्थान , जहाँ कभी कौए बोलते हैं, वे भी युगलों के स्वागत के लिए गुलजार हो जाते हैं .
जब भी कोई नई और सुपाच्य रीति, कहीं से भी, पूर्व , पश्चिम, या उत्तर, दक्षिण से हो, अपना लेनी चाहिए, किन्तु उसकी कीमत पर अपनी रीति को स्वाहा नहीं कीजियेगा. अनुकरण और अन्धानुकरण में भेद रखना ही पड़ेगा.
क्या भारत में प्रेम के लिए मर मिटने वाले कम विभूतियाँ रही हैं? उनके जन्म दिवस को तो कोई नहीं मनाता, तो फिर १४ फ़रवरी का अन्धानुकरण क्यों? वैश्विक विश्व में,आवश्यकता आज इस बात की है कि हम अपने तीज त्योहारों को भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित और प्रसारित करें. ठीक उसी तरह जैसे सिर्फ पंजाब में मनाया जाने वाला कराचौथ, बिहार में मनाई जानी वाली छठ, या गुजरात में मनाया जाने वाला नृत्य- गरबा, आज पूरे देश में मनाया जाने लगा है, इसी तरह हमारे त्योहारों को विदेशों में भी प्रसारित किया जाना चाहिए.
संयोग, एक अच्छी चीज उजागर की खंख्रियाल जी ! मगर बात वही है की हम लोग कामदेव की उपासना कम और पादरी वेलेंटाइन की उपासना में ज्यादा लीन है :)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गोदियाल जी, यही एक विडंबना हैभारत की
हटाएंbadiya samyik chintan-manan karati prastuti..
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मदनोत्सव के इस देश में बहुत कुछ प्रकृति से जुड़ा है ....और यही प्रेम का पावन भाव है.... सार्थक चिंतन
जवाब देंहटाएंप्रेम का कोई इतिहास नहीं है, विधियों में मतभेद है..
जवाब देंहटाएंभाई,
जवाब देंहटाएंहर बढ़िया वस्तु हिट नहीं होती,
हर बढ़िया पोशाक फिट नहीं होती.
कुछ सुंदर चेहरे नायक बन हिट जाते हैं
कुछ बैकग्राउंड में खड़े रह पिट जाते हैं.
यही हाल दिनों त्यौहारों का है. क्या हिट हो जाएगा कोई कह नहीं सकता.
घुघूतीबासूती
badiya chintan...
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