कल ही दिव्या के द्वारा लिखा " क्या आपके पास एक आदर्श मित्र है ? - श्री कृष्ण जैसा " आलेख पढ़ा और संक्षिप्त समीक्षा के बाद अपने कार्यो में लग गया . आलेख दिमाग में पर यो हावी होता गया की मेरा ध्यान अभी अभी गाँव में हुई एक छोटी सी घटना पर आ पड़ा . जिसने इस आलेख की विस्तृत समीक्षा, व्याख्या और प्रकरण जनित बातें स्पष्ट का दी
.वर्तमान में हमारे गाँव के ग्राम प्रधान महोदय , का बचपन बड़ी ही गरीबी, अभावों और विकटताओं से जूझता हुआ प्रगतिशेल होता है . आस्सम रायफल की नौकरी से प्रारंभ हुई प्रगति I T B P की नौकरी तक निरंतर चलती रही. आवश्यकता के अनुरूप , खेती, मवेशी, घर, मकान, सभी कुछ जोड़ा कभी पनघट के पिसे आटा की भगोड़ी ( जब लोग आटा पीसते हैं तो लोग घरात मालिक को दोनों हाथ के हथेलियों पर जितना आटा आ सके पारिश्रमिक के रूप में देते हैं ) पर निर्भर जिन्दगी को बदल दिया . अपने सबसे छोटे भाई को स्नातकोत्तर की पढाई उपलब्ध करवाई . ये छोटे साहब बड़े ही कूटनीतिक किस्म के इंसान हैं बचपन में कुत्तों और बैलों के लड़ाई करवाने वाला व्यक्ति आज लोगो की लड़ाई सफाई से करवाता है और बाद में सुलह के लिए भी खुद पहुच जाता है . प्रधान जी I T B P में ड्राइवर थे तो द्रैवारी से कमाया भी खूब . प्रगति देखते ही सभी की प्रसंसा का पात्र भी बना रहा . रिटायर होने बाद व्यक्ति ने धनार्जन औ बहु बलिष्ठ होने कारण कुछ अख्खड़ स्वभाव ग्रहण कर लिया यानि कभी भी किसी को कुछ भी कह दो
धन प्रदर्शन की बारी आयी तब जब महोदय ग्राम प्रधान के चुनाव के लिए उठे . हमारे परिवार का और इनके परिवार का तीन पीढ़ियों का प्रेम और मित्रता रही है गाँव में कई दंश झेलने की शक्ति उन्हें मेरे दादाजी लोगो से मिलती रही है यानि पक्का प्रेम और पक्का साहचर्य . दोनों परिवार एक दूसरे के पूरक रहे है वर्तमान तक हम अभी भी इन लोगो को हर भले बुरे काम में पारिवारिक रूप में शामिल करते रहे है. किसी कारण वश प्रधानी के चुनाव हमारे परिवार की नाराजगी का परिणाम उनेह हार से देखना पड़ा . परन्तु अगली बार गलती को सुधारते हुए महोदय को समर्थन भी मिला और प्रधानी भी . यानी यहाँ पर भी मित्रता का पलड़ा भारी रहा .
१७ नवम्बर को मेरी भतीजी कि शादी संपन्न हुई और २२ नवम्बर को हमारी जेष्ठ स्वर्गीय भाभी का वार्षिक पिंडदान था पिंडदान में हमारे यहाँ तीन दिन तक परिक्रिया चलती रहती है अर्थात २० नवम्बर से निकट पारिवारिक मेहमानों का आगमन शुरू हो गया था २१ ता को अन्य परिचित मित्र रिस्तेदार आदि लोग सम्मिलित होते हैं . तो बात २० नम्बर की है मैं दिन में ही काम काज के देख भाल के लिए नीचे बड़े भाई के घर में चले गया ( हमारा घर गाँव में सबसे ऊपर है आने जाने में लगभग दस से पंद्रह मिनट लगते हैं ) मेरे साथ मेरा भतीजा कपिल भी था सारे काम , बैठने की व्यवस्था , खाने पीने के व्यवस्था आदि सभी कार्यों को निपटाने लगे .
प्रधान जी बड़े भाई जी के निकटतम पडोसी भी हैं , शाम को मित्रगनो के लिए कुछ विशेष प्रबंध किये जा रहे थे , और प्रधान जी सादर आमंत्रित थे . जैसे प्रधान जी का आगमन हुआ और बैठते ही प्रधान जी बड़े भाई से कहते है " दाताराम देखो मोहन (मेरे अपने सगे दूसरे नम्बर के भाई का नाम है ) के परिवार वाले तो सब ऊपर में गप्पें लड़ा रहे है. मैंने अभी आते समय उन्हें फटकार लगायी तो वे अब पहुंचे " आगे कि बात को भापते हुए मैंने उन्हें टोक दिया उन्हें अँधेरे में मेरी उपस्थिति का भान नहीं था यानि हमारे पारिवारिक मामलेमें दखल देकर मित्रताका अनूठा नारदीय परिचय देना था जिसे परिवार के बीच फूट और गल्फह्मियाँ पैदा हो सकें . मेरे अवरोध और विरोध के बाद श्रीमान जी उठ कर चल दिए किसी ने भी नहीं रोका .
तो ये था तीन पीढ़ियों कि मित्रता का परिणाम और पुरूस्कार फूट डालो और राज करो . घरों में आग लगावो और फिर पानी भी दिखाओ बुझाने के लिए .
अपारदर्शियों से दूर ही रहें।
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जवाब देंहटाएंगिरधारी जी ,
मित्रता की परख तो आड़े वक़्त में ही होती है । लेकिन मुखौटाधारी मित्र , जितनी जल्दी हमसे दूर होते हैं उतना ही सौभाग्य समझिये।
इस वाकये को हम सभी के साथ साझा करने के लिए आभार।
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परिवर्तन की चुनौतियों के रोमांच से भरा जीवन.
जवाब देंहटाएंभाई गिरधारी जी आपके ब्लॉग के मार्फ़त गाँव हो आया, ....... सार्थक प्रयास है.......... प्रधान जैसे मुखौटाधारी व्यक्ति तो सभी जगह मिल जायेंगे, विशेषतः राजनीती में........आप ठहरे सरल ह्रदय के. ........बस, हमें स्वयं ही इनसे बचना होगा ......... आपका नाम कुछ जाना - पहचाना सा लग रहा है. शायद.
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