गंगे कुछ पल रुको !
आक्रोश को रोको
क्रोध को थामो
पीड़ा का क्रंदन , स्पंदन ,
व्यथा ,निश्वास , आह और कराह
समेट लो सिसकियों में
गंगे कुछ पल रुको !
तुम्हारे क्रोध से, आक्रोश से
मैती आकुलित हैं
व्यथित, व्याकुल , निस्तब्ध हैं
प्रलयंकारी गर्जन से
माँ कैलाशी प्रार्थना बद्ध है
बद्री केदार भी नत मस्तक हैं
हिम गिरी भी व्याकुल है
पुकार रहे हैं
गंगे कुछ पल रुको !
सदियों से दे रही हो शीतल निर्मल अमृतमयी जल
पाप कष्टों का कर रही हो हरण - प्रबल !
निर्विकार निर्निमेष धरा का पग पग करती हो प्रक्षालन !
तो तुम्हे क्या दे रहे हैं ये मानव जन
मैला ! विष प्रदूषण !
और विषमयी बना अमृतमयी जल !
तो यह गर्जन , आक्रोश क्यों न हो !
दमनीय हो चुकी है हिम्पुत्री
कुछ पुत्रियाँ तो सहती हैं
कुछ प्राण निछावर करती हैं
कितु कुछ सीमा तोड़ आक्रोशित , क्रोधित होती है
जीवन सबका है जीवन के लिए !
तुम भी तो आक्रोश में हो
क्रोध में हो
प्रलयंकारी विनाशकारी रूप लिए हो
सब डरे हुए है भयभीत हैं !
गंगे कुछ पल रुको
आक्रोश सहज है
कितु मैती पुकार रहे हैं
नतमस्तक है,
शांत और मौन की प्रार्थना कर रहे है
और पूछ रहे हैं,
ऐसा प्रलय क्यों
ऐसा हाहाकार क्यों
थोडा शांत
थोडा मौन
गंगे कुछ पल रुको !
( वर्ष २०१० अतिवृष्टि के रूप में जाना जायेगा उत्तराखंड में अति वृष्टि ने प्रलय की स्थिति पैदा कर दी है यह भी मानव निर्मित विपतियाँ है गंगा और यमुना अपने उफान पर है न जाने कितना उबाल आयेगा इन जीवन दायिनी नदियों में . बाढ़ का प्रकोप ने सभी को भयभीत कर दिया है )
गिरधारी खंकरियाल
आक्रोश को रोको
क्रोध को थामो
पीड़ा का क्रंदन , स्पंदन ,
व्यथा ,निश्वास , आह और कराह
समेट लो सिसकियों में
गंगे कुछ पल रुको !
तुम्हारे क्रोध से, आक्रोश से
मैती आकुलित हैं
व्यथित, व्याकुल , निस्तब्ध हैं
प्रलयंकारी गर्जन से
माँ कैलाशी प्रार्थना बद्ध है
बद्री केदार भी नत मस्तक हैं
हिम गिरी भी व्याकुल है
पुकार रहे हैं
गंगे कुछ पल रुको !
सदियों से दे रही हो शीतल निर्मल अमृतमयी जल
पाप कष्टों का कर रही हो हरण - प्रबल !
निर्विकार निर्निमेष धरा का पग पग करती हो प्रक्षालन !
तो तुम्हे क्या दे रहे हैं ये मानव जन
मैला ! विष प्रदूषण !
और विषमयी बना अमृतमयी जल !
तो यह गर्जन , आक्रोश क्यों न हो !
दमनीय हो चुकी है हिम्पुत्री
कुछ पुत्रियाँ तो सहती हैं
कुछ प्राण निछावर करती हैं
कितु कुछ सीमा तोड़ आक्रोशित , क्रोधित होती है
जीवन सबका है जीवन के लिए !
तुम भी तो आक्रोश में हो
क्रोध में हो
प्रलयंकारी विनाशकारी रूप लिए हो
सब डरे हुए है भयभीत हैं !
गंगे कुछ पल रुको
आक्रोश सहज है
कितु मैती पुकार रहे हैं
नतमस्तक है,
शांत और मौन की प्रार्थना कर रहे है
और पूछ रहे हैं,
ऐसा प्रलय क्यों
ऐसा हाहाकार क्यों
थोडा शांत
थोडा मौन
गंगे कुछ पल रुको !
( वर्ष २०१० अतिवृष्टि के रूप में जाना जायेगा उत्तराखंड में अति वृष्टि ने प्रलय की स्थिति पैदा कर दी है यह भी मानव निर्मित विपतियाँ है गंगा और यमुना अपने उफान पर है न जाने कितना उबाल आयेगा इन जीवन दायिनी नदियों में . बाढ़ का प्रकोप ने सभी को भयभीत कर दिया है )
गिरधारी खंकरियाल
मेरी गंगा का आक्रोश, मैदान पर आकर कम क्यों हो जाता है। क्यों नहीं पापियों को घर से निकाल कर ले आती है? क्यों भूपेन हजारिका को गाना पड़ता है, गंगा बहती है क्यों?
जवाब देंहटाएंपांडये जी सादर अभिवादन , उत्तराखंड को गंगा का मायका माना जाता है और मैदानी भाग को ससुराल के रूप में प्रदर्शित किया जाता रहा है घर से निकलते हुए गंगा अपने पर होते अत्याचारों के प्रति रुष्ट, क्रोधित है परन्तु ससुराल में तो हर बेटी सिर झुका ही लेती है इसीलिए वह कुछ धीमी पड़ जाती है किन्तु इसी धीमी गति से भी वह गन्दगी , अत्याचार , प्रदुषण विषैला पण को दूर करने के लिए पूरी सफाई कर ही देती है यही बात ठीक मानवीय गुणों पर लागू होती है बेटी ने ससुराल में अत्याचार के खिलाफ यदि बिगुल बजा दिया है तो वह विजयी होती है अन्यथा उसकी जान ही जाती है . न जाने हजारिका जी को क्यों गाना पड़ा गंगा बहती क्यों हो !
जवाब देंहटाएंएक उत्कृष्ट रचना ! ऐसी रचनाओं से ब्लॉगजगत का मान बढ़ता है |
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंनिसंदेह एक उत्कृष्ट रचना। पढने में तथा इसका विषय भी बेहद सुन्दर। सार्थक रचना -आभार
.
बहुत ही सुंदर.
जवाब देंहटाएंhttp://sudhirraghav.blogspot.com/
शांत और मौन की प्रार्थना कर रहे है
जवाब देंहटाएंऔर पूछ रहे हैं
ऐसा प्रलय क्यों
ऐसा हाहाकार क्यों
थोडा शांत
थोडा मौन
गंगे कुछ पल रुको !
...सार्थक रचना -आभार