शनिवार, 15 मई 2010

२ मई का दिन मेरे लिए बहुत धुक्दै रहा। मैं अपननी साली के घर पर था और सुबह सुबह वापस घर जाने के लिए तैयार हो रहा था नास्ते की प्लेट मेरे आगे थी एक चपाती खाई थी कि और दूसरी कि ओरहाथ बढाया ही था कि फ़ोन की घंटी बजने लगी । फ़ोन उठाते ही मेरी भांजी की आवाज़ रोती हुई सुने दी । कह रही थी मामा जी जल्दी आओ , पिताजी को कुछ हो गया है, मैंने पूछा किक्या हुआ है , मम्मी से बात कराओ तो मेरी बहन कभी एक ही जबाब था कि इन्हें कुछ हो गया है जल्दी आओ । सुबह से उठ नहीं रहे हैं ।

मैं दिल्ली में राम मनोहर अस्पताल के पास था मेरे पहुचनें में समय लगता । मैंने उन्हें डॉक्टर लाने कि सलाह दी । मेरा मन किसी भयानक अनहोनी के लिए काँप उठा । नास्ते को छोड़ कर जाने लगा । तो मेरे साथ मेरे साडू भी साथ हो लिया । इस बीच हम मेट्रो ट्रेन में ही थे कि फ़ोन आया हम इन्हें इ एस आई हॉस्पिटल ले जा रहे हैं, आप वहीँ आयें । हम दोनों इ एस आई हॉस्पिटल जैसे ही पहुंचे तो परों के नीचे से जमीन खिसक गयी। डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था । उनके साथ आये हुए लोगों ने मेरी बहन को किसी तरह घर भेज दिया था । डॉक्टर कुछ भी लिख कर देने को तैयार नहीं था , किसी तरह डॉक्टर से मृतक के लिए एक सर्टिफिकेट तैयार करवाया ताकि म्रत्यु प्रमाण पत्र में परेशानी न हो।

फ़ोन से अन्य रिश्तेदारों को सूचित किया सभी लोगों के आ जाने पर अंतिम यात्रा का आखिरी पड़ाव का बंदोवस्त किया । पंचतत्व में विलीन हो जाने के बाद , अगले दिन से लोगों का घर पर यों आना जाना हो गया दो दिन छुट्टी पर रहा किन्तु उबर नहीं पाए। मेरे बड़े भाई साहब भी आ चुके थे । मैंने कार्यकर्म का जिम्मा उन्हे सौंप दिया और मैं ऑफिस ड्यूटी पर चला आया सिर्फ इसलिए की मैं वहां पर बिलकुल भी मानसिक रूप से परेशान सा था ।
उथल पुथल के बीच हमने वह सब किया जो करना होता है पूरा कर्मकांड भी । और तेरहवीं भी ।
उन्हें क्या हुआ था , जो व्यक्ति ५ बजे सुबह उठकर फिर दुबारा सो गया और ऐसा सोया की फिर कभी न उठ सका। अपने पीछे एक बेटा और दो बेटियों को छोड़ कर जिनकी अभी न तो पढाई पूरी हुई न ही किसी को जॉब , अलविदा हो गया . मैं अब इसी मानसिक द्वन्द में रहा की क्या मुष्य की जिन्दगी इतनी ही है.
कभी भी कुछ भी हो सकता है . अलबता वे एल आई सी के एजेंट थे संभवत कुछ पालिसी हो सकती है जो सायद पीछे परिवार के काम अ सकता है । इस सब में एक अछि बात एह रही की उनकी कंपनी ने उनके बेटे को उनके स्थान पर जॉब देने की घोषणा की । क्योंकि सभी लोग उनके व्यवहार से प्रभवित थे । अत: उनकी श्रधान्जली सची साबित हो सकती है।
मेरी बहिन के जीवन में एक सूना पण आ गया । हमनी जबरदस्ती हंस कर उनको बालने की कोशिश भी की । किन्तु जब हम ही इतने दुखी हैं तो उसके मन मस्तिष्क पर क्या बीत रही होगी । मुझे बहुत आघात लगा । मैं किसी तरह से अपनी बहिन की जिंदगी के सूने पण के लिए कुछ कर सकूं एय्ही मेरा प्रयास होगा और एही मेरी श्रधांजलि hogi

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