सोमवार, 24 जनवरी 2011

क्या छायावाद वापस आ रहा है ?

वैज्ञानिक विकास की   सघन छाया में पलता पोषता आधुनिक जीवन  और जीवन की विचारधारा  अतीव तीव्र है गति भी और सञ्चालन भी . इस खोजी युग में ना जाने कितने वैज्ञानिक जन्म ले रहे है प्रश्न का उत्तर कठिन है . ऐसे युग में  वैज्ञानिक दृष्टिकोण  से  अवलोकन करने पर  प्रतीत  होता है कि प्रायः नीरस साहित्य का  सृजन होगा .  यही एक क्रम प्रारंभ हुआ था जब छायाबाद   के उतरोत्तर कवि सभी प्रगतिवादी विचारधारा की कविताये व् अन्य साहित्य का सृजन करने लगे . स्वयं  सुमित्रानंदन पन्त उत्तर काल में   प्रगति वाद और मार्क्सवाद  से अछूते नहीं रहे . अर्थात धीरे धीरे छायावाद का पराभव हो गया.
   

कविता ने नए रूप में जन्म लिया . छंद मुक्त हुई, बंधन मुक्त हुई . गद्यात्मक पद्य की रचना  अपने यौवन पर इठलाने लगी . फली फूली और  एक रसदार कविता का पराभव भी हुआ . तत्पश्चात गद्य युक्त, छंद मुक्त, बंधनमुक्त, कवियों और कविताओं की बाढ़ सी आने लगी.  यही पता न लग  सके की कौन किस पद का स्वामी है. लगभग अलंकारो की बलि चढ़ा ही दी गयी.

पुस्तके छपती रही, पत्र पत्रिकाए  भी, साहित्य में  भी निरंतरता  बनी  रही,  परन्तु निरंतरता यदि भंग हुई तो  मेरी स्वयं की . पढ़ने की रूचि, काम  की बोझिल आद्रता, कार्य क्षेत्र  का  अरुचिकर  परिवेश .  सब कुछ से बाधित होता रहा . आर्थिकी भी एक कारण रहा . किन्तु यदा कदा समय मिलने पर कुछ संयोजन करते ही चले गए.
           पिछले एक डेढ़ वर्ष से ही सीधी तरह से इन्टरनेट का उपयोग कर रहा हूँ  इस उपयोग के माध्यम से ब्लॉग तक पंहुच बनायीं . यहाँ आकर अनेक विद्वानों की रचनाओं का रसास्वादन करने लगा . कल्पनातीत  है कि जिन व्यवसायिक कार्य क्षेत्र को साहित्य के लिए  मैं नीरस  समझता रहा  उसी क्षेत्र के लोग साहित्य सृजन में अनुपम योग दान कर रहे हैं.  जैसे  डॉक्टर , इंजिनियर  वैज्ञानिक क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति , ये सभी उच्च कोटि से , तल्लीन होकर अपने  इन कार्य क्षेत्रों के बाहर साहित्य में, कवितायेँ , लेख (सामाजिक, राजीनीतिक , और अध्यात्मिक जैसे विषयों ) कहानियां  आदि का निरंतर सृजन कर रहे हैं
         कवियों की तो बाढ़  सी आयी हुई है,  ब्लॉगजगत कवितामय हो गया है,   और इन कविताओं में भी प्रेम गीत गए जा रहे है.  अधिकांश कवि या कवियत्रियाँ पुरुष और नारी को ही माध्यम बनाकर, या मानवीयकरण कर छायावादी विचार धारा से ओतप्रोत  हैं. कोई झील , कोई गुलाब और कोई नारी कि जुल्फों को ही माध्यम बना  रहे है

कभी कुछ अधिकारिता के कारण पुरुष और नारी के विषय को संवेदन शील बना दिया जाता रहा परन्तु जब कविता उमड़ती  है तो  कलम ( कीबोर्ड  ) पर आधिपत्य  नहीं रह जाता और वह अनवरत अनायास ही प्रेम, प्यार ,  पारस्परिक संबंधों के विस्तार को कंठ मुक्त होकर  सोछोवास लिखने लगती है छंद रहित, बंधन रहित, छायावादी कविताओं  को, बिना ही अलंकारों के भी,  तो भी  अच्छी लगती है .
क्या हम पुनः छायावाद की   ओर मुड रहे हैं या  छायावाद वापस आ रहा है ?

मंगलवार, 4 जनवरी 2011

हिमालय के अंतराल में छिपे कुछ दर्शनीय एवं पौराणिक स्थल

यों तो गढ़वाल ही नहीं अपितु सारे उत्तराखंड में तीर्थ स्थलों, मंदिरों एवं सुरम्य पर्यटक स्थलों की भरमार है । इस धरोहर के लिए भारत ही नहीं पूरे विश्व में प्रसिद्द है इसी कारण हजारों तीर्थ यात्री एवं पर्यटक उत्तराखंड पहुँचते हैं।
प्रायः लोग मुख्य स्थानों , बदरीनाथ केदारनाथ , नैनीताल, कौसानी, मसूरी, हरिद्वार, ऋषिकेश, एवं गंगोत्री यामोत्री धाम की ओर रुख करते हैं। जो हमेशा के लिए अपने दर्शकों का मन मोह लेते हैं। परन्तु कई छोटे छोटे व् दुर्गम तीर्थ एवं पौराणिक , पर्यटक स्थल हैं जिनसे स्थानीय लोगों के सिवाय बाहर की दुनिया अभी भी अनभिज्ञ हैं।
आइये ऐसे ही कुछ स्थलों से आपका परिचय कराता हूँ :-

त्रिकुटी सरोवर ( तारा कुण्ड) - उत्तराखंड में कमलेश्वर ( पौड़ी गढ़वाल ) से लेकर बागेश्वर (कुमांऊ) तक फैला हुआ राष्ट्रकूट नामक पर्वत श्रृखला है । इस पर त्रिकुट नामक श्रेणी है । इस श्रेणी पर अकल्पनीय एक सुन्दर जलाशय एवं शिव मंदिर है जिसे तारकुंड या त्रिकुटी सरोवर भी कहते हैं। विरानेश्वर( विन्देश्वर या बिनसर ) भी इसी पर्वत श्रृखला पर स्थित है। इसका वर्णन स्कन्द पुराण में भी उपलब्ध है। लोगों के मतानुसार इस क्षेत्र का नाम राठ भी इसी पर्वत के नाम का विकृत रूप है।

तारा कुण्ड पौड़ी से लगभग ६० से ७० किलो मीटर की दूरी समुद्र ताल से १६०० मीटर की उचाई पर पट्टी धैज्युली ग्राम बडेथ के ठीक ऊपर चोटी पर स्थित है। यहाँ तक पहुचने के लिए पौड़ी से पैठाणी-चाकिसैन तक मोटर मार्ग तथा चकिसैन से पैदल सीधी खड़ी चढ़ाई लगभग ७- ८ किलोमीटर । चाकिसैन समुद्र तल से लगभग १५३० मी की उचाई पर स्थित है । दूसरा मार्ग पैठाणी से मोटर मार्ग होता हुआ सिर्तोली , पल्ली होते हुए ठीक बडेथ गाँव तक पहुंचा जा सकता है।
इस शिखर पर एक शिव मंदिर एवं सुन्दर जलाशय व् एक कुंवा है जिसकी गहराई १०-१२। मी बताई जाती है इस शिखर से दोनों ओर के सभी गाँव दृष्टिगोचर होते हैं। इतनी ऊँचाई पर होने के बावजूद पानी की उपलब्धता , एक तालाब और कुण्ड के रूप में अकल्पनीय लगती है। परन्तु यहाँ हर मौषम में पूरे साल पानी उपलब्ध रहता है।
भाद्रपद कृष्ण जन्माष्टमी एवं phalgun शिवरात्रि पर मेले के आयोजन भी होता है। कृष्ण जन्माष्टमी पर इस सरोवर में प्रायः नील कमल खिले रहते हैं मन भावनी बरसात की हरियाली और वसंत पर खिलते लाल बुरांश इन मेलों की शोभा पर चार चाँद लगा देते हैं प्रकृति का यह मनोरम दृश्य बरबस मन को मोह लेता है।
मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक छोटी से गुफा नुमा सुरंग सी है कुछ वर्ष पहले यहं एक योगिनी रहा करती थी जब श्रद्धालु गुफा के आगे चावल या भेट स्वरूप पैसे रखते थे तो तो चूहे आकर वस्तुओं को उठाकर योगिनी तक ले जाते थे ऐसा योगिनी स्वयं बताती थी
किंवदंतियों के अनुसार भागीरथ जब आकाश मार्ग से गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रयास कर रहे थे कुछ छोटी सी जल धारा यहाँ पर पदार्पित हुई और और पानी का बहाव इतना तेज था किआज भी नीचे के गांवों ( ऐन्गार , कुटकांडई,) में स्पष्ट दिखाई देता है कि कभी यहाँ बढ़ जैसी आपदा आयी होगी बड़े बड़े शिलाखंड इस बात कि ओर कुछ तो इशारा करते हैं ।
कुटकांडई महदेव के ठीक ऊपर एक बहुत बड़ा शिलाखंड है जो दूर से देखने पर शीघ्र गिर जाने कि संभावना प्रतीत होती है कई वर्षोंसे यह एक छोटे पत्थर की ओट पर टिका हुआ है।
तारा कुण्ड की विशेषता तालाब और कुण्ड के पानी की है । बरसात में प्रायः तालाब का पानी गन्दा हो जाता है किन्तु साथ में ही कुण्ड का पानी बिलकुल स्वच्छ रहता है। कुण्ड के पानी को लोग गंगा जल की तरह घरों को लेकर जाते हैं निकासी के रूप में कुण्ड का पानी दो श्रोतो से कोटेश्वर( कुट कांडई ) महादेव तथा राहू के मंदिर पैठाणी में निकलता है।

राहू का मंदिर - त्रिकुट पर्वत की घाटी में , श्योलिगड़( रथ वाहिनी) एवं पश्चिमी नयार ( नवालिका ) के पुनीत संगम पर पैठाणी गाँव स्थित है। यहाँ पर राहू का मंदिर है । कुछ लोगों के मतानुसार यह मंदिर पांडवों तथा कुछ शंकराचार्य द्वारा निर्मित बताते है। इस मंदिर की उपरी शिखा कुछ झुकी हुई प्रतीत होती है। इस स्थान का नाम पैठाणी राहू के गोत्र पैठानासी के कारण पड़ा । "राठेनापुरादेभव पैठानासी गोत्र राहो इहागच्छेदनिष्ठ " और राहू के मंदिर के कारण संभवतः इस समूचे क्षेत्र का नाम राठ पड़ा । यहाँ के लोग पहले काले वस्त्र पहना करते थे चूँकि राहू को काले वस्तुए एवं वस्त्र पसंद है इसीलिए संभवतः काले वस्त्र प्रचलन में आये हों ।

पौड़ी से पैठाणी की दूरी लगभग ५०की मी है यहाँ तक सीधे मोटर मार्ग उपलब्ध है। मंदिर का निर्माण काल तथा बनावट के निश्चय हेतु पुरातत्वा वेताओं का अध्यन आवश्यक है। फिलहाल यह मदिर भारतीय पुरातत्वा विभाग के संरक्षण में है। सरकार को चाहिए ऐसे स्थलों की ओर ध्यान देकर उनका पुनरुधार तथा संदार्यी करण एवं विकास करना चाहिए।


शिन्गोड़-इसी राष्ट्रकूट पर्वत श्रृखला पर दूधातोली वन प्रखंड में शिन्गोड़ नामक स्थान है। जिसे रिस्ती की भरवाडी भी कहते है रिस्ती रथ क्षेत्र का आखिरी गाँव है। चाकी सैन से रिस्ती की दूरी लगभर ३५-४० कि मी
है। यहं के लिए माना जाता है कि रामायण कालीन महर्षि श्रृंग का आश्रम है यह क्षेत्र प्राकृतिक सम्पदा एवं सुन्दरता के लिए अलोकिक रूप से धनी है।

स्कन्द पुराण के अनुसार इस आश्रम के पास से ही वहां की तीन प्रमुख नदियों का उदगम स्थल है।ये नदियाँ रथवाहिनी , नावालिका , तथा व्यास गंगा कहलाती हैं । रथ वाहिनी ( स्योलिगड़ ) तथा नावालिका ( पश्चिमी नयार ) दोनों पैठाणी में संगम करती हैं तथा ये दोनों मिलकर व्यास गंगा( पूर्वी नयार) के साथ सतपुली संगम करते हैं ।
इस क्षेत्र में अन्न और दूध, घी तथा शहद कि प्रचुरता पाई जाती है।

इतने पौराणिक स्थलों एवं प्राकृतिक सुन्दरता की अनुपम छटा लिए हुए होने पर भी ये सभी स्थान विकास की गति से दूर हैं यदि यहाँ पर सुविधाएं एवं संरक्षण सरकार द्वारा प्रदान किया जाय तो ये सभी स्थल पर्यटन और तीर्थ के रूप में उभर सकते हैं। इन स्थानों पर पर्याप्त शोध की आवश्यकता है। जिससे पर्यटन में नया अध्याय जुड़ सके ।