शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

नव वर्ष की शुभकामनाये


सभी ब्लागरों , पाठकों,  लेखकों  व् नागरिकों,  को  सहृदय, नव आगंतुक वर्ष के लिए,  हार्दिक  शुभ कामनाएं ,

.आशा करता हूँ कि सभी के लिए नव वर्ष में अपार हर्ष और खुशियाँ  आयें  आपका लेखन दिनोदिन मर्म और जीवंत हो उठे जिससे समाज और देश का  गौरव बढ़ सके .
 इस सन्देश को पढने तक संभवतः नव वर्ष आपकी दहलीज पार करचुका होगा !

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

शिक्षा सभी के लिए , सभी के द्वारा ,सामान्य रूप से पोषित हो

भारत सरकार ने बुनियादी रूप से शिक्षा के लिए कानून तो बना लिया किन्तु इस कानून का हस्र इस तरह भयावह हो जायेगा शायद कल्पना  नहीं की होगी . आजकल दिल्ली  के स्कूलों में  भारी गहमागहमी बनी हुई है दिल्ली की सरकार  ने प्रवेश की छूट तो उन्हें  दे दी किन्तु मनमानी के लिए पूरी लगाम हाथ में रखी हुई है या यों कहे की मिल बाँट की बंदर बाँट होने जा रही  है. सभी समाचार पत्र इन दिनों  नर्सरी प्रवेश की सुर्खियाँ बनाने में लगे हुये हैं.

इन नौ निहालों को स्कूल भेजना , पढाना,  टेढ़ी खीर होती जा रही है कभी तो जमाना था लोगो को पढ़ने से लाभ नहीं दिखाई देता  था  और अब लोगो की जरूरत बनी , जागरूकता के कारण , तो शिक्षा दो कदम दूर होती जा रही  है. माध्यम वर्गीय लोगों के लिए तो  आज शिक्षा  दूभर बन गयी है  शिक्षा एक अभिशाप्प की तरह पनप रही है  जब कि कभी  अशिक्षा अभिशाप का पर्याय  हुआ करती थी .
प्राइवेट स्कूलों में फ़ीस की मात्रा इतनी  अधिक है  कि हर व्यक्ति इसे  वहन करने में  समर्थ नहीं है सरकारी स्कूलों  की हालत बदतर बनी हुई है  यहाँ तो माद्यम  और धनाड्य वर्ग के बीच एक बड़ी लाइन खींचती  हुई  दृष्टिगोचर होती है  पूंजीवादी वर्ग अपने हितों के आगे सभी का शोषण इस तरह कर देना चाहता है कि पुनः कोई भी शिक्षा के लिए किसी स्कूल को खोजना बंद कर दे . सरकारें   इन लोगों कि बंधक बनती जा रही हैं.  और ये स्कूल सरकार  को ब्लाक्मैल करने पर तुले हुए है.
प्रवेश की इतनी जटिल प्रक्रिया  बन गयी है  कि विश्वविद्यालयों व् M B A 's की CAT ,MAT  XAT आदि  प्रवेश परीक्षाएं भी कमतर लग रही हैं  कितने  ही वर्ग उसमे बने है एक नया वर्ग पैदा हुआ है अलुमिनी . ना जाने इन सब के पीछे लूट का मकसद है या फिर  कानून को विफल करने की  सफल कोशिश . नर्सरी  की फीस  प्रति वर्ष ३००००/ से लेकर १०००००/ और इससे भी ज्यादा हो सकती है
गरीब के बच्चों के कोटे में प्रवेश पर समर्थ व्यक्ति से फ़ीस वसूलने  का फार्मूला  भी गजब ढा रहा है.  गरीब की परिभाषा भी परिभाषित  नहीं है   अर्थात गरीब के नाम पर अमीर के बच्चों को ही  प्रवेश की चाल स्पष्ट दिखाई दे रही है, पोईन्ट्स, और लाटरी के शिष्टम, दोनों में अंतर  किया जा रहा है हर स्कूल अपने मन मफिग पॉइंट्स  या लाटरी शिष्टम अपना  रहा है हित स्कूल का ही साधा  जा रहा है
इतनी जटिलताये  उन बच्चों के लिए जिन्होंने अभी पूरी तरह से आंख भी ना खोली है जिनके प्रकृति के साथ अठखेलियाँ करने के दिन है क्यों उन्ही के लिए इस तरह की जटिलताएं पनप रही है. समाज और सरकार,इन बच्चों के जीवन से खिलवाड़ करके,  .   क्या प्राप्त करना चाहती है ?
इतनी जटिलताओं में घिरने के बजाय तो इन्हें सीधी MBA प्रवेश की पात्रता क्यों ना दी जाय  ताकि बड़े होने पर पुनः M B A के लिए पात्रता ना हाशिल करनी पढ़े ?  शिक्षा मूल अधिकार है उसे हर व्यक्ति और बच्चे के लिए उपलब्ध होना  चाहिए  उसके दरवाजे तक .  धन की कीमत पर शिक्षा  की दुकानदारी ने सभी मूल्यों को चौपट कर दिया है. समाज की विकृतियाँ , बेरोजगारी . इस अवमूल्यन की प्रमुख देन हैं .  शिक्षा सभी के लिए , सभी के द्वारा ,सामान्य रूप से पोषित हो .  तभी समाज का समुचित विकास संभव है 

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

बुन्खाल में काली की पूजा और पशु संहार

          सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके , शरण्यं त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते .
उत्तराखंड देव भूमि कहलाती है  तमाम देवी देवताओं का निवास स्थल है उत्तराखंड . मान्यताएं  और आस्था का अनुपमन संगम .
प्राकृतिक सुन्दरता और वैभव से सुसज्जित .  किन्तु इसके साथ हैं कुछ अभिशप्त करने वाली आस्थाएं  जैसे विभिन्न  देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए की गयी पशु बलि मनोतियां .
पशु बलि वंहा पर अक्षर सभी देवी देवताओं को चढ़ाई जाती है किन्तु  माँ काली  के सम्मुख तो असंख्य पशुओं को एक साथ निर्मम संहार होता है  माँ काली का प्रभाव तो सबसे अधिक  पशिचिमी बंगाल में  था  परन्तु आज वहां  पर बलि प्रथा समाप्त हो चुकी है.  प्रतीकात्मक बलि तो आज भी  दी जाती है पशु हत्या पर रोक लग चुकी है. . उत्तराखंड ने  अभी भी इस प्रथा को कायम रखा   है.
गढ़वाल क्षेत्र में,   बुन्खाल  में  काली माँ  का  थाल है  यहाँ पर हर वर्ष मार्गशीर्ष  के महीने में  भव्य मेला लगता है   दूर दूर  तक  के लोग यहं मेला देखने,  अपनी मनोती मनाने और पूर्ण हुई   मनोती की पूर्णाहुति देने पहुँचते  हैं .
घटना कुछ सत्य बातों पर आधारित है,  उनिस्व्वी शताब्दी के  उतरार्ध में  किसी  समय कुछ  गाँव के बच्चे   इन खेतों के पास गाय बछियों  के साथ खेलते रहे  किसी विवाद या खेल के कारण  इन बच्चों ने किसी  लड़की  को  गढ़े में   गाढ़ दिया  और सारे बच्चे घर चले गए किन्तु उस लड़की को बाहर निकालना भूल गए फलस्वरूप उसकी म्रत्यु  हो गयी  जब घर में खोज की गयी    तो उसका कही पता नहीं चला . कहते है उस  लड़की ने अपनी माँ को सपने में अपने मरने की व्यथा  सुनाई और ये भी कहा की मुझे वहां से मत निकालना  मैं  देवी के रूप में परवर्तित हो चुकी हूँ .  कहते है  कभी देर  रात्रि तक जो लोग घर नहीं पहुँच पाते थे  या किसी प्रकार का खतरा होता था तो वह आवाज देकर उन्हें सचेत करती थी  जंगली जानवरों से , लुटेरों डाकुओं  आदि खतरों से स्थानीय लोगो को सचेत करती रहती थी . सचेत ही नहीं सुरक्षा भी करती थी
बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में गढ़वाल में गोरखे आततायी बन कर आये  इसी समय  गढ़वाल की सुरक्षा के लिए गढ़वाल नरेश ने ब्रिटिश शासन  से मदद मांगी थी .  उस समय भी काली  ने  लोगों  को सुरक्षा के लिए  सचेत किया था  उसकी आवाज गोरखों  के कानो में पड़ी और उन्होंने उसे गढ़े  से निकालकर उसी गढ़े में उल्टा गाढ़ दिया  तब से उसकी आवाजे लगनी बंद हो गयी .
इसी महत्व  के कारण यहाँ  पर प्रारंभ से ही मेला लगता रहा  और  पशु बलिया होती चली आ रही हैं. सैकणों निरीह भैसा ( बागी) और मेढ़ो (खाडू) की बालियाँ दी  जारही हैं.
कुछ समय से प्रशासन यहाँ  लोगों को चेतावनियाँ  देता आ रहा था  कई बार पुलिस बल तैनात भी किये गए कितुं आस्था का सैलाब पुलिस और प्रशासन को बौना कर देता और वे सिर्फ मेले के दर्शक बन कर रह जाते . सुना  है इस बार प्रशासन  ने पहले ही इसके लिए कुछ व्यवस्था बनाई  और किसी सीमा  तक  सफलता भी प्राप्त की  अर्थात कुछ लोगो ने प्रशासन के रुख को देखते हुए अपने कार्यकर्म या   रद्द कर दिए   या उन में परिवर्तन  किया  जो लोग  पशुओं को लेकर वहां पहुचे  उन्हें रोका तो  नहीं  कितु उन्हें परंपरागत  तरीके से बलि देने में परेशानी हुई क्योंकि मुख्य हन्ता ( जो सबसे पहले पशु पर तलवार आंशिक रूप से चलाता  है)  भी अनुपस्थित  रहे .
खबर है की  अब प्रशासन उन पर मुकदमें चलाने की फिराक में है.  अन्ततोगत्वा अब लोग भी धीरे  धीरे  जागरूक होते जा रहे हैं . इस सारी सफलता  के लिए स्थानीय  गाँव के लोग ही स्वयं आगे आये  आशा है भविष्य में इस पर पूरी तरह से रोक लग सके  कानूनी रोक जरूरी नहीं है लोगो की जागृत भावना इस दिशा में काम करे त्तभी सफलता  मिलेगी . बुन्खाल का तो मात्र जिक्र है ऐसी कई जगहे है जहा पर सामूहिक रूप से  इस तरह की  पशु  बलि का आयोजन होता है. और लोग अपने स्वार्थ को सिद्ध करते पाए जाते हैं.
मां काली उन्हें सद बुद्धि प्रदान  करे   और इन पशुओं की अभिवृद्धि  हो सके  जो अब इन बालियों के कारण लुप्त होने के कगार पर हैं.    

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

तीन पीढ़ियों की मित्रता का पुरुस्कार - फूट डालो गलत फहमियां पैदा करो

कल ही दिव्या के द्वारा लिखा " क्या आपके पास एक आदर्श मित्र  है ? - श्री कृष्ण जैसा "  आलेख पढ़ा  और संक्षिप्त समीक्षा के बाद अपने कार्यो में लग गया .  आलेख दिमाग में पर यो हावी होता गया की मेरा ध्यान अभी अभी गाँव में हुई एक छोटी  सी घटना पर आ पड़ा . जिसने इस आलेख की विस्तृत समीक्षा, व्याख्या  और प्रकरण जनित  बातें स्पष्ट का दी
.वर्तमान  में हमारे गाँव  के ग्राम प्रधान महोदय , का बचपन  बड़ी ही गरीबी, अभावों और विकटताओं से जूझता हुआ प्रगतिशेल होता है . आस्सम रायफल की नौकरी से प्रारंभ हुई प्रगति  I T B P  की नौकरी तक  निरंतर चलती रही.  आवश्यकता के अनुरूप , खेती, मवेशी, घर, मकान, सभी कुछ जोड़ा  कभी पनघट के पिसे आटा की भगोड़ी ( जब लोग आटा  पीसते हैं  तो लोग  घरात मालिक को दोनों हाथ के हथेलियों पर जितना आटा  आ सके  पारिश्रमिक के रूप में देते हैं ) पर निर्भर जिन्दगी  को बदल दिया .  अपने सबसे छोटे भाई को स्नातकोत्तर की पढाई उपलब्ध करवाई . ये छोटे  साहब बड़े ही कूटनीतिक किस्म के इंसान हैं बचपन में कुत्तों  और बैलों के लड़ाई करवाने वाला  व्यक्ति  आज लोगो की लड़ाई सफाई से करवाता है और बाद में सुलह के लिए भी खुद पहुच जाता  है . प्रधान  जी  I T B P में ड्राइवर  थे  तो द्रैवारी से कमाया   भी खूब .  प्रगति देखते ही सभी की प्रसंसा का पात्र भी बना रहा . रिटायर  होने बाद व्यक्ति ने धनार्जन औ बहु बलिष्ठ होने कारण कुछ अख्खड़ स्वभाव  ग्रहण  कर लिया  यानि कभी भी किसी को कुछ भी कह दो
धन प्रदर्शन  की बारी आयी तब   जब महोदय ग्राम प्रधान के चुनाव के लिए उठे .  हमारे परिवार का और इनके परिवार का तीन पीढ़ियों का प्रेम और मित्रता  रही है  गाँव में कई दंश झेलने की शक्ति उन्हें मेरे दादाजी लोगो से मिलती  रही है  यानि पक्का प्रेम और पक्का साहचर्य . दोनों परिवार एक दूसरे के पूरक रहे है  वर्तमान  तक हम अभी भी इन लोगो को हर भले बुरे काम में पारिवारिक रूप में शामिल करते रहे है. किसी कारण वश प्रधानी के चुनाव हमारे परिवार की नाराजगी का परिणाम उनेह हार से  देखना पड़ा . परन्तु अगली बार  गलती  को सुधारते हुए  महोदय को समर्थन भी मिला और प्रधानी भी . यानी यहाँ पर भी मित्रता का पलड़ा भारी रहा .

१७ नवम्बर  को मेरी भतीजी कि  शादी संपन्न हुई और २२ नवम्बर को हमारी जेष्ठ  स्वर्गीय भाभी  का वार्षिक पिंडदान था  पिंडदान में हमारे यहाँ तीन दिन तक परिक्रिया चलती रहती है  अर्थात २० नवम्बर से निकट पारिवारिक मेहमानों का आगमन शुरू हो गया था  २१ ता को अन्य परिचित मित्र रिस्तेदार  आदि लोग सम्मिलित होते हैं . तो बात २० नम्बर की है  मैं दिन में ही काम काज के देख भाल  के लिए नीचे बड़े भाई के घर में चले गया ( हमारा  घर गाँव में सबसे ऊपर है आने जाने में लगभग दस से पंद्रह मिनट  लगते हैं ) मेरे साथ मेरा भतीजा कपिल भी था सारे काम , बैठने की व्यवस्था , खाने पीने के व्यवस्था आदि सभी कार्यों को निपटाने लगे .
प्रधान जी बड़े भाई जी के निकटतम पडोसी भी हैं , शाम को मित्रगनो के लिए कुछ विशेष प्रबंध किये जा रहे थे , और प्रधान जी सादर आमंत्रित थे . जैसे प्रधान जी का आगमन हुआ और बैठते ही  प्रधान जी बड़े भाई से कहते है " दाताराम देखो मोहन (मेरे अपने सगे दूसरे नम्बर के भाई का नाम है ) के परिवार वाले तो सब ऊपर में गप्पें लड़ा रहे है. मैंने  अभी आते समय उन्हें फटकार लगायी तो वे अब  पहुंचे " आगे कि बात को भापते हुए मैंने उन्हें  टोक दिया उन्हें अँधेरे में मेरी उपस्थिति का भान नहीं था  यानि हमारे पारिवारिक मामलेमें  दखल देकर  मित्रताका  अनूठा  नारदीय  परिचय  देना था  जिसे परिवार के बीच फूट  और गल्फह्मियाँ  पैदा हो सकें . मेरे अवरोध और विरोध के बाद श्रीमान जी उठ कर चल दिए  किसी  ने भी   नहीं रोका .
तो ये था तीन पीढ़ियों कि  मित्रता का परिणाम और पुरूस्कार  फूट डालो  और राज करो . घरों में आग लगावो  और फिर पानी भी दिखाओ बुझाने  के लिए .